


l(समय न होने पर भी कलाकार अभियंता ने कला को किया उजागर) (योगेश पांडे)









: यदि शहर में ढूंढने निकले तो एक से बड़कर एक प्रतिभा के धनी व्यक्ति मिलेंगे l उन्ही में से एक हैं लोनिवि के अधिशाषी अभियंता हरीश कोठारी, रामलीला हो या रामायण या भागवत महा पुराण हरीश कोठारी हर जगह के लिए थोड़ा समय निकाल लेते हैं l इस क्रम में इन्होंने दीपावली पर सुंदर कविता लिखी है जिसे ध्यान से पड़कर समझने की जरुरत है l कविता इस प्रकार है l,, तम का दीप जले जब मन में दीपावली हो जाए lजिस दिन मन मन्दिर हो जाए, छल दम्भ द्देश मन को नहीं भाए, पाखण्ड झूठ अन्याय न सुहावे, मन मन्दिर प्रज्ज्वलित हो जाए, दिवाली हो जाए, दिवाली हो जाए lसत् का दीप जले जब मन में , ज्योति पड़े तम के जब तन में, सत् की ज्वाला फैले तन में, सत् मन फूल समान सुहावे, दिवाली हो जाए दिवाली हो जाए lदुर्मति के मन भड़के ज्वाला, सांच का दीप उसे न सुहावे lक्रोधाग्नि वश चला अहम में तम के दीप को बुझाने l दीप का तेज दुर्मति का मन का तन का दंभ बड़ा l दीपक के प्रतिकार स्वरूप, दुर्मति का छल दंभ बड़ा, अपने ही क्रिया कलापों से दुर्मति का ही अंत हुआ l जब दीप जले सच के मन के मन मन्दिर में बिन तेल दिया l तम का हरण- हुआ तब मन से l मन में मीत सब ही सुहावे, दिवाली हो जाए, दिवाली हो जालोनिवि के अधिशाषी अभियंता ने दीपावली पर लिखी कविता ए ll

