


(योगेश पांडे)










हल्द्वानी । नैनीताल के ओखल कांडा ब्लॉक में स्थित उत्तर भारत के एकमात्र देवगुरु बृहस्पति धाम के साथ ही छोटा कैलाश जैसे आध्यात्मिक स्थलों को यदि मंदिर माला मिशन में शामिल किए जाने के प्रयास परवान चढ़ते है तो क्षेत्र में तीर्थाटन पर्यटन की गतिविधियों को बल मिलने के साथ ही यह क्षेत्र में रोजगार के अवसरों के लिए भी बेहतर साबित होगा।
भीमताल के विधायक राम सिंह कैड़ा ने इसी मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की है। उनका कहना है कि उनका प्रयास ओखलकांडा स्थिति देवगुरु महाराज मंदिर व पिनरो स्थित छोटा कैलाश मंदिर, विनायक गोलू देवता मंदिर के सौंदर्याकरण जीर्णोद्धार व नव निर्माण करने के लिए इन आध्यात्मिक स्थलों को मंदिर माला मिशन योजना में सम्मलित कराना है। यहां बता दें कि उत्तराखंड के नैनीताल जिले के ओखलकांडा क्षेत्र में देवगुरु बृहस्पति का मंदिर है। जो कि समुद्र तल से आठ हजार फिट की ऊंचाई पर है l यह देवगुरु पर्वत की चोटी पर स्थित है । इस मंदिर को देवगुरु बृहस्पति की तपस्थली माना जाता है। कहा जाता है यहां बृहस्पति देव ने तपस्या की थी। इसलिए इस पर्वत को देवगुरु पर्वत कहा जाता है। मंदिर के आस-पास के गांवों में लोग देवगुरु बृहस्पति को ही आराध्य देव के रुप में पूजते हैं। यह स्थान आज भी देवगुरु के अलौकिक रहस्यों को प्रकट करता है।
माना यह भी जाता है कि समूचे विश्व में देवगुरु को समर्पित यह एकमात्र मंदिर है। इस मंदिर में की गई पूजा कभी खाली नहीं जाती। बताया जाता है कि इस मंदिर में पूजा अर्चना करने पर इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।आसपास के इलाकों में देवगुरु को ही आराध्यदेव के रूप में पूजा जाता है। इस स्थान पर आकर देवगुरु बृहस्पति के ध्यान लगाने की कई कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है कि यहां उनकी पूजा-अर्चना कब से शुरू हुई।
इस मंदिर से जुड़ी कथाओं के अनुसार बृहस्पति देव की पूजा करने से कुंडली में ग्रह का अशुभ असर खत्म हो जाता है। विवाह में देरी और दाम्पत्य जीवन में परेशानियाें को दूर करने के लिए कई लोग यहां पूजा करने आते हैं। देवगुरु की पूजा करने से धन लाभ, राजनीति में पद-प्रतिष्ठा और जीत मिलती है। ऐसा कहा जाता हैं।
# *अंग्रेज भी मानते थे देवगुरु का चमत्कार #
देवगुरु के चमत्कारों से अंग्रेज भी भली – भांति वाकिफ थे. देवगुरु बृहस्पति पर अंग्रेजों की भी गहरी आस्था थी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देवगुरु की इच्छा से यह मंदिर खुले आकाश के नीचे है. भक्तों ने यहां मंदिर निर्माण की बात सोची लेकिन सभी की इच्छाएं धरी की धरी रह गईं. क्योंकि देवगुरु की इच्छा खुले आकाश के नीचे विराजमान रहने की थी ।

