


(समाज को प्रेरणा देते रहते हैं हरीश कोठारी अपनी कुमाऊं की संस्कृति से प्रेम के कारण कुमाउं कि भाषा में लिखीं गुरु और ज्ञान की महिमा)










(योगेश पांडे)
हल्द्वानी रिटायर्ड अधिशासी अभियंता हरीश कोठारी डारा रचित कुमाऊंनी भाषा में कविता गुरु और ज्ञान के साथ हमारे ईश्वर और हमारे पहाड़ के दर्द का भी वर्णन करते हैं l
कविता इस प्रकार है आप भी अर्थ समझिए
दृष्टि बिन गुरुः ज्ञान नै बिन धुणीं ध्यान नै ।
बिन गोरू गोठ नै बिन आमा पान नै।
बिन पांखै पंछी नै बिन डंके बिच्छु नै।
बिन पाणी गाड़ नै बिन माँगै झाड़ नै।
बिन स्यैणी मैंस नै बिन साड़ी स्यैणी नै।
बिन गुरुः ज्ञान नै बिन ज्ञानै राम नै ।
बिन रामै सृष्टि नै बिन सृष्टि दृष्टि नै।।
बिन दृष्टि भक्ति नै बिन भक्ति शक्ति नै।।
बिन शक्ति शिव नै बिन शिवै सत्य नै।
बिन सत्यै सुंदर नै बम बम बम्बकम्बम्बम् ।।
बिन गुरु ज्ञान नै बिन धुणीं ध्यान नै।।
हरिः ॐ नमः शिवायः सत्यम् शिवम् सुन्दरम् । बम बम।ॐ।।
इस कुछ शब्दों में दर्द पहाड़ का,, दर्द बुजुर्गो के अकेले पन का ,,,और देवता,,, और भगवान की परिभाषा छिपी है l l
केवल आपके समझने कि देर है l

