

(हल्द्वानी से मात्र 15 किलोमीटर
दूर गाँव हो गया वीरानl दो परिवारों मे से रहने वाली एकमात्र महिला दुर्गा देवी को फिर से बहार आने की उम्मीद)











(योगेश पांडे)
उत्तराखंड का कितना विकास हुआ, कितने यहाँ की सरकार संवेदनशील है विकास को लेकर इस बात की पोल खोलता है हल्द्वानी से मात्र पन्द्रह किलोमीटर दूर बसा बल्युटी गांव।
जरा सोचिए यह गांव कोई साधारण गांव नहीं यह गांव है विकास पुरुष कहे जाने वाले चार बार उत्तर प्रदेश के एक बार उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का पैतृक स्थान है।
अब उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड में विकास करने वाले खुद मुख्यमंत्री और केन्द्र सरकार में कई बड़े पदों में मंत्री पद में रहने वाले नारायण दत्त तिवारी के गांव का जहाँ आज इंसान के नाम पर केवल दो परिवार रह रहे हैं। जिसमें से एक महिला दुर्गा देवी हैं, जिन्हें आज भी विश्वास है कि मेरे करन अर्जुन आएंगे और 1970 की तरह यह गाँव फिर से आबाद हो जाएगा।
क्या यह कभी आबाद रहे विकास पुत्र का जनक बल्युटी गाँव हमारे सरकारों के खोखले वादों की पोल खोलने के लिए काफी नहीं है। कोई भी सोच सकता है कि जब हल्द्वानी से मात्र 15 किलोमीटर विकास पुरुष के जन्म स्थल का यह हाल है तो सीमांत क्षेत्र में बसे गांवों और वहाँ के रहने वालों का कैसा हाल होगा l आज उत्तराखंड अपने 24 वर्ष इस वर्ष के अंत में रजत जयंती की तैयारी कर रहा है l हमारे पहाड़ों के पलायन को रोकने के लिए हर नेता बयान देते हुए दिखता है , अब कितना सच कितना झूठ है सबके सामने है ब्ल्युटी गांव हकीकत रुप में जहाँ मात्र एकमात्र स्कूल आज भी है लेकिन अब पड़ने वाल कोई नहीं , जहाँ पहले हरे भरे खेत हुआ करते थे आज जंगल और झाड़ियाँ आपका स्वागत करेंगी l
गाँव मे बसी एकमात्र महिला दुर्गा देवी बताती हैं सुविधा न होने के कारण यहाँ के सब निवासी हल्द्वानी व काठगोदाम में जाकर बस गए हैं तब से उन्होंने एक बार भी पलट कर नहीं देखा l खुद दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री नारायण तिवारी ने भी इस और ध्यान नहीं दिया l
केवल सड़क उनके द्धारा बनवाई गई थी l क्या हमारे उत्तराखंड राज्य के विकास के लिए जरूरी नहीं की शहर से पहले गांवों का विकास हो जहाँ हमारी जड़ें हैं l अगर गाँव समृद् होंगे तो शहर अपने आप विकसित हो जायेंगे l
जरूरत है इन वीआईपी लोंगो को जगाने की जो संसद में बैठे कर अपने लिए तो भत्ता वेतन, पेंशन आदि के लिए तो विधेयक तो ला सकते हैं पर विकास के नाम पर जूते चप्पल चलाते हैं l
और जरूरत हो गई है देश के चौथे स्तंभ मीडिया को जागने की। ताकी फिर कोई गाँव इस तरह बदहाली को रोए।

