

(योगेश पांडेय )











हल्द्वानी: उत्तराखंड में इन दिनों 38वें राष्ट्रीय खेलों की धूम मची हुई है। इस खेल महाकुंभ में खेल प्रेमी जमकर डुबकियाँ लगा रहे हैं। देश के विभिन्न राज्यों से उत्तराखंड पहुंचे खिलाड़ी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। आम आदमी, जनप्रतिनिधि, अधिकारी, कर्मचारी, युवा और बच्चे खेलों का जमकर लुफ्त उठा रहे हैं। मीडिया कर्मी भी खेलों की प्रतिस्पर्धा पर अपनी नजर रखे हुए हैं।
38वें राष्ट्रीय खेलों का शुभारंभ देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देहरादून में किया था, और अब इन खेलों का समापन 14 फरवरी को गृहमंत्री अमित शाह हल्द्वानी में करेंगे।
यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पूरी मुहिम में मुख्यधारा के मीडिया का कहीं कोई अस्तित्व नहीं दिख रहा। सवाल यह उठता है कि ऐसा क्यों हुआ, और क्या कारण हैं इसके पीछे। जब हमने गहनता से इस पर मंथन किया, तो कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आईं।
दरअसल, खेलों की शुरुआत में ही सूचना विभाग ने सोशल मीडिया पर (वॉट्सऐप) एक संदेश भेजा, जिसमें मीडिया कर्मियों से अपने पास बनवाने की अपील की गई थी ताकि खेलों की कवरेज की जा सके। इसके लिए एक लिंक जारी किया गया और बताया गया कि इस लिंक के माध्यम से मीडिया कर्मियों को ऑनलाइन पास के लिए आवेदन करना होगा। क्योंकि यह संदेश वॉट्सऐप ग्रुप में जारी किया गया था, बहुत से पत्रकार इसे देख नहीं पाए और सीमित संख्या में कुछ पत्रकारों ने पास के लिए आवेदन किया, जिनमें से कुछ को पास मिल भी गए। लेकिन अचानक से उस साइट को बंद कर दिया गया।
जब खेलों के प्रारंभ में कुछ पत्रकार कवरेज करने के लिए स्टेडियम पहुंचे, तो उन्हें यह बताया गया कि पास के बिना उन्हें मीडिया कर्मियों के लिए रिजर्व किए गए स्थान पर नहीं बैठने दिया जाएगा। इसके बाद पत्रकारों ने सूचना विभाग और खेल विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया, तो यह बात सामने आई कि दोनों विभागों के बीच तालमेल की कमी है। काफी प्रयासों के बाद भी खेल विभाग के अधिकारियों ने सूचना विभाग की कोई मदद नहीं की, और यह कहकर बात को टाल दिया कि ऑनलाइन पास की आवेदन लिंक फिर से खोल दी गई है।
लेकिन खेल विभाग की लापरवाही के कारण फिर से पत्रकारों को सही जानकारी नहीं मिल पाई। कुल मिलाकर, 38वें राष्ट्रीय खेलों का प्रचार-प्रसार और कवरेज जिस तरह से होना चाहिए था, वह नहीं हो पाया। खेल विशेषज्ञ पत्रकारों की स्टेडियमों से दूरी और खेल विभाग द्वारा दी गई आधी-अधूरी जानकारियों ने न केवल खिलाड़ियों का मनोबल तोड़ा है, बल्कि आम जनता को भी अधूरी खबरों से निराश किया है।
आधी-अधूरी जानकारी से टूटता है भरोसा l
हल्द्वानी: खेलों की खबरों को क्षणिक समय के लिए फेसबुक में लाइव करने वाले कुछ पत्रकार यह भूल जाते हैं कि किसी भी खेल प्रतिस्पर्धा की आधी-अधूरी जानकारी को लाइव करने से सोशल मीडिया से जुड़े दर्शकों का भरोसा टूट जाता है। इसका मतलब यह है कि यदि खेलों को सोशल मीडिया के माध्यम से लाइव करना है, तो प्रतियोगिता के दौरान टीमों के नाम, किस राज्य के बीच प्रतिस्पर्धा हो रही है, और खेल परिणामों को सही तरीके से दिखाना बेहद जरूरी है। केवल आधी-अधूरी जानकारी और प्रसारण से दर्शकों की उत्सुकता और समझ में कमी आती है, जो किसी भी खेल कवरेज के लिए उचित नहीं है l

