


(विकास है इस नदी को रोकने में बाधक या प्रकृति का कुछ और सन्देश )










# पहला प्रकृति का सन्देश दिसम्बर की बर्फबारी हो रही मार्च में # / दूसरा सन्देश जनवरी में खिल गए बुरांश के फूल जो खिलते थे अप्रैल में#
(योगेश पांडे)
एक बहुत पुराना गाना याद होगा शिप्रा नदी सी तू चंचला में भी हूँ बचपन से मंचला,, l यह कोई कहानी नही हकीकत है और परिणाम भी सामने भवाली बाबा नीम करौली धाम से गुजरने वाली शिप्रा नदी का प्रवाह धीरे धीरे कम हो रहा है l प्रकृति का गुस्सा मान लें या क्लाइमेट का बदलाव प्रकृति स्पष्ट रूप से सन्देश दे रही है जो मानव से लेकर जल जंगल पर्यावरण किसी के लिए ठीक नही है जरूरत है इसे समझ कर उपाय करने की l यह बात मान लें की पहाडों में आंधाधुंध विकास यदि प्राकृतिक नुकसान का हिस्सा बना तो वही पर्यावरण संरक्षण से दूर भागना भी बहुत बड़ा कारण है l सोचने पर मजबूर कर दिया मौसम विभाग और पर्यावरण वैज्ञानिकों को इस बदलाव ने कि अप्रैल में खिलने वाले बुरांश के फूल जनवरी में खिल गए और नैनीताल में दिसम्बर में गिरने वाली बर्फ मार्च में गिर रही है lप्रकृति का यह बदलाव बहुत बड़ी चिंता का विषय है कि खाली कागजों में योजना बना व अखबार में विज्ञापन जारी कर धरती को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता उसके लिए धरातल में कार्य होने भी जरूरी हैं l बात यदि शिप्रा नदी के रुके प्रवाह के कारणों की की जाए तो एक नही बहुत से कारक हैं जिस पर पर्यावरण विदों का ध्यान गया ही होगा लेकिन सिस्टम जो भृष्ट हो गया उसके चलते उन्होंने भी इन सब से आखें मुद् ली लगता है l श्याम खेत से निकली उत्तर वाहिनी शिप्रा नदी आज 25 किलोमीटर तक अपनी छोटी सी यात्रा में ही विलुप्त के कगार पर है l भवाली, कैंची धाम, रातिघाट, राम गढ़ सहित कई गांवों व क्षेत्रों की जीवनदायनी इस मां शिप्रा नदी का अस्तित्व मानव हस्तक्षेप के कारण हो रहे क्लाइमेट चेंज का जीता जाता उदाहरण है कुमाऊँ विवि के सेवानिवृत प्रोफेसर अजय रावत बताते हैं कि उन्होंने शिप्रा नदी में काफी तेज बहाव देखा था इसकी चंचलता पर ही गाने के बोल भी बने थे,, शिप्रा नदी सी चंचला,, मैं भी हूँ बचपन से मनचला,, l आज न वह गाना रहा न नदी का वह प्रवाह l कारण पहाडों का अंधाधुंध विकास है माना चलने के लिए सड़क जरूरी है पर कहीं कहीं एक साथ दो रास्ते बनाए जा रहे हैं l एक किलोमीटर सड़क बनाने के लिए लगभग 80 पेड़ काटे जाते हैं l इतना ही नही एक किलोमीटर सड़क बनाने के दौरान 40 से 80 हजार क्युबिक मीटर मलबा भी निकलता है lइस मलबे को नदी में डाल दिया जाता है जो नदी के प्रवाह को रोक देता है l इस प्रवाह का मार्ग बदल जाने से मलबा नदी के साथ जंगल में जाता है तो पेडों की प्रवृति बदल जाती है l हमें अभी भी प्रकृति के रुख और मुड़ को देखकर बहुत कुछ करना होगा l

