

हर खबर पर नज़र

(योगेश पांडे)










नाबार्ड और विशेष सहायता योजना में बजट की कमी नहीं इच्छा शक्ति की कमी। देहरादून । राज्य की अवस्थापना योजनाओं पर तेजी से कार्य करके आर्थिक विकास दर को दोगुना करने के लक्ष्य में सरकारी विभागों की सुस्ती व सुस्त कार्यप्रणाली ही बाधा बन रही है। वित्तीय वर्ष का दूसरा तिमाही भी गुजरने को है, लेकिन अधिकांश विभागों की विकास योजनाओं से जुड़ी प्रगति बहुत ढीली व निराशाजनक है।यह स्थिति तब है,जब नाबार्ड व पूंजीगत कार्यों के लिए विशेष सहायता योजनाओं में बजट की पर्याप्त व्यवस्था है। वित्त विभाग अब ढीला प्रदर्शन करने वाले विभागों की रिपोर्ट मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री के सामने रखने जा रहा है। सरकार के स्तर से इस मामले में विभागों को कड़े दिशा निर्देश जारी हो सकतें हैं। कुछ विभाग तो बजट प्रावधान के सापेक्ष मात्र दस से पच्चीस प्रतिशत ही खर्च कर पाए,जबकि अपेक्षा सभी विभागों में छह महीने के भीतर पचास प्रतिशत खर्च करने की लगाई जा रही थी। लोनिवि को सड़कों पुलों के निमार्ण के लिये 1.440 करोड़ रुपए खर्च करने है, लेकिन विभाग जारी 784 करोड़ रुपए के सापेक्ष 362 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाया। जबकि प्रदेश में सड़कें जगह जगह क्षतिग्रस्त हो गई है। सिंचाई विभाग 1.380 करोड़ जारी धनराशि का 271 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाया है। पेयजल विभाग 442 करोड़ रुपए के सापेक्ष पचास करोड़ रुपए ही खर्च किए। विभाग स्वच्छ भारत मिशन के तहत उपयोगिता प्रमाण पत्र सरकार को नहीं भेज पाया। नियमानुसार धनराशि की अगली किश्त जारी होने के लिए समय पर उपयोगिता प्रमाण पत्र भेजे जाने जरुरी है। इन विभागों के खर्च की प्रगति से शासन संतुष्ट नहीं हैं विज्ञान प्रौद्योगिकी,वन विभाग, ग्रामीण निर्माण विभाग, पशुपालन विभाग,समाज कल्याण विभाग आदि। नाबार्ड की ग्रामीण अव संरचना विकास निधि का उपयोग करने के मामले में विभागीय सुस्ती विकास योजनाओं में भारी पड़ रही है। मुख्य सचिव को भी समीक्षा बैठक में विभागीय सचिवों को हिदायत जारी करनी पड़ी। फिर भी नहीं जाग पाए नींद से। उत्तराखंड जैसे राज्यों के लिए सुस्त विभाग और लापरवाही घातक सिद्ध हो सकती है।


