

(लघु हिमालय में भगवाँन बद्री नारायण)











(योगेश पांडे)
शैव और शाक्त प्रधान हिमालयी क्षेत्र में बद्री नारायण के निवास करने की कथा रोचक है, उच्च हिमालय से लघु हिमालय में बद्री मंदिरों के रूप में भगवान् विष्णु के विग्रह की स्थापना का उद्देश्य भी महत्वपूर्ण रहा है l पूर्व शासक लोगों में आस्था जगाने के लिए जगह जगह मन्दिर यात्रा मार्गों पर बनवाते रहे कारण जो भक्त किसी कारण वश बद्री नारायण नहीं जा पा रहे हैं उनके दर्शन के लिए कुमाऊँ की लघु हिमालयी पट्टी में भगवाँन बद्री नारायण स्थापित किए गए l कुमाऊँ में ऐसे बद्री नारायण के विग्रह वाले बारह मन्दिर हैं l
इनमे से एक मन्दिर सल्ट पट्टी में भी है l बद्रीनाथ मन्दिर में 17 से 18 वीं सदी मध्य की विशिष्ट शिल्प कला की वांनगी दिखती है l चौप खिया यानी चार ढाल वाली छत मन्दिर के मुख्य द्दार पर विशाल लकड़ी के पिलरों में उत्कृष्ट नक्काशी की गई है l मन्दिर में खास बात यह है कि शक्ति के प्रतीक शेर और सुख समृदि के प्रतीक गजराज की कलाकृतियां अद्भुत बनाती हैं l इस बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि चन्द शासन में शिल्प कला कितनी स्मृद् रही होगी l
घोड़े से उतरने की परम पंरा l मन्दिर के सामने से घोड़े पर बैठ कर जाना अशोभनीय माना जाता है l इसिलिए किसी भी जाती का दूल्हा यदि उस पथ से घोड़े पर जायेगा तो बद्री नाथ मन्दिर के आगे उसे घोड़े से उतरना होगा l एक खास बात और देखी गई की यहाँ विवाह खुले आसमां के बजाय घरों के अंदर होते हैं l

