


(दौ सौ वर्ग मीटर में थे नैनीताल जिले में साठ जलाशय, गर्मी के छह माह नदियों को देते थे जीवन)










(योगेश पांडे)
हल्द्वानी ओह रे ताल मिले नदी के जल में नदी मिले सागर में सागर मिले कौन से जल में कोई जाने न l चौकिये मत खबर में गाना लेकिन इस गाने का अर्थ यहाँ फिट बैठता है कारण भवाली कैंची धाम से उत्तर मुखी बहने वाली शिप्रा नदी क्यों अपना स्वरूप खो रही है क्यों जनवरी में बुरांश के फूल खिल गए और नैनीताल में दिसम्बर में पड़ने वाली बर्फ क्यों मार्च में पड़ रही है ऐसे अनेक सवाल मौसम विभाग और पर्यावरण विद्दों के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं l वहीं आम जनमानस के घोर संकट के कारण l यह गाना यहाँ इसलिए फिट बैठता हैं कि शिप्रा नदी के लिए जलस्रोत का सबसे बड़ा माध्यम भवाली का वेटलैंड भी हुआ करता था l हुकूमत अंग्रेजों की थी उस समय नैनीताल क्षेत्र के दौ सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में यहाँ के साठ जलाशय इस पूरे क्षेत्र को जल से लबालब रखा करते थे अंग्रेजों ने जगह को छखाता ( षष्ठी खाता) नाम तक दे दिया था l ताल मिले नदी के जल में गाने के बोल के अनुसार यही जल शिप्रा नदी को जीवन देता था और जंगलो को नव जीवन l समय के साथ गाना भी पुराना हुआ और छ खाता भी सिमटा अब तो अंगुली में गिने जाएं उतने जलाशय भी नही रह गए हैं l अब इस गाने को तो लोग कभी कभी गुनगुनाते होंगे पर वह छखाता साठ ताल किसी को भी याद नही होंगे l वर्तमान समय में सुखा ताल, अयार पाटा का जंगल, शेर का डाँडा , टीवी सेनोटेरियम का क्षेत्र, नैनीताल, भीमताल आदि ही बचे हैं l पुर्व में यह साठ ताल वर्षा के समय में पूर्ण रूप जी भर जाया करते थे l कुमाऊँ विश्व विद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर अजय रावत ने अपने अतीत के दिनों को याद कर बताया कि नैनीताल क्षेत्र की अच्छी व्याख्या अंग्रेजी शासनकाल के दौरान लिखी पुस्तकों में दर्ज है l जिस दौ सौ वर्ग मीटर क्षेत्र को छखाता नाम दिया गया उसमें भवाली का नाम भी आता था l इन सब का मुख्य कारण जो नदी सुख रही है उन्होंने प्राकृतिक सम्पदा का अत्यधिक दोहन और अनावश्यक निर्माण व विकास को बताया l उनके अनुसार यदि नदी, जंगल और पशु पक्षी विलुप्त हो जायेंगे तो मानव जीवन भी खतरे में आ जायेगा l उन्होंने कहा कि शिप्रा नदी अपने पूर्ण अस्तित्व में तभी आ पायेगी जब आम जन मानस कोशिश करेगा इसे बचाने की और सरकारों को भी अपनी पूर्ण कोशिश करनी होगी और नदियों के जल स्त्रोत को फिर तैयारी करना होगा lनदी को बचाने के लिए मुख्य यह कार्य करने होंगे l (1) नदी के रास्ते में चीड़ की जगह बांज और उतीश के पेड़ लगाने होंगे l (2) नदी के किनारे पक्के निर्माण पर रोक लगानी होगी l (3) नदी के अंदर किसी भी तरह का मलबा जाने से रोकना होगा l(4) इसके लिए ठोस कानून लाना होगा कि नदी ने सीवर या किसी भी प्रकार की गन्दगी न जाए l (5) पहले के जल स्त्रोत को तलाश कर पुनर्जीवित करने होंगे (6) नदी के रास्ते को रोकने वाले सारे व्यवधान समाप्त करने होंगे (7) लेक डेवलेपमेंटअथॉरिटी को सक्रिय करते हुए झीलें बचाने के लिए फिर से कार्य किया जाए l यह रिटायर्ड प्रोफेसर अजय रावत के बताये उपाय हैं l मगर इन सब के लिए आम जन मानस की कोशिश व सरकार की काम करने की शक्ति भी शामिल होनी चाहिए l क्या फिर कभी आज का मानव आज से पूर्व का वह गाना जो इस शिप्रा नदी को देख बना था गुनगुना पायेगा,, शिप्रा नदी सी तू चन्चला ,, मैं भी हूँ बचपन से मन चला,, l हो सकता है l यदि कार्य करने की प्रति और नदी के साथ अपने जीवन को बचाने का संघर्ष हो l

